Saturday, May 23, 2009

चुनाव में मीडिया की भूमिका का पोस्टमार्टम.

राज्यसभा के चुनाव में उन्हें वोट देने के लिए मैंने पैसे नही मांगे थे ,मगर मेरी ख़बर छापने के लिए वो पैसे मांग रहे है।चुनाव के दौरान यु.पी. के एक अख़बार मालिक के बारे में ये बात लखनऊ से भाजपा के प्रत्याशी लालजी टंडन ने बकायदा एक प्रेस कांफ्रेंस में कही थी।इसे अपने संबोधन में दोहराते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रभाष जोशी ने इस चुनाव में मीडिया के कारोबारी स्वरुप और उसकी कारगुजारियों का कच्चा चिठ्ठा पेश किया।दूसरी तरफ़ देश के एक और वरिष्ठ पत्रकार श्री बी.जी.वर्गीज़ ने भी मीडिया के इस अतिरेक पूर्ण आचरण की तीखी निंदा की।इस अवसर पर इंदौर के टीवी पत्रकार सुबोध खंडेलवाल द्वारा "चुनाव में मीडिया की बदलती भूमिका"पर लिखी गयी एक रिपोर्ट का विमोचन भी किया गया.

मौक़ा था १५ मई २००९ यानी चुनाव के नतीजे आने के एक दिन पहले इंदौर में हुई एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का. संगोष्ठी को सबसे पहले प्रभाष जी ने संबोधित किया।  प्रभाष जी ने लगभग ४० मिनिट के उद्बोधन में मीडिया की धंधेबाजी की खूब ख़बर ली. मीडिया के दागी चेहरे को बेनकाब करते हुए उन्होंने कहा कि इस बार देश के पाठको ने अखबारों में चुनाव से सम्बंधित जो भी खबरे पढी उनमे से ज़्यादातर किसी न किसी उम्मीद्वार के पैसे के प्रभाव में छापी गई थी, और यदि किसी के खिलाफ ख़बर छपी तो वो इसलिए छपी क्योकि उसने विज्ञापन को खबरों के रुप में छापने का पेकेज नही लिया था.

इसके पहले सुबोध खंडेलवाल ने चुनाव में मीडिया की बदलती भुमिका पर आधारित रिपोर्ट के बारे में जानकारी प्रस्तुत की. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में कुछ अपवादो को छोडकर देश का मीडिया सिक्के से चलाने वाले पब्लिक फोन की तरह नजर आया, जिसमे सिक्का डालने  वाले व्यक्ति की आवाज़ ही सामने वाले व्यक्ति छोर तक पहुचती है. यदि किसी ने इसमें सिक्का नही डाला है तो तो फिर चाहे उसकी आवाज़ कितनी भी बुलंद हो वो दब जाती है.

प्रभाष जी के भाषण के वीडियो की पहली कड़ी यहाँ है -



 
प्रभाष जी के भाषण की दूसरी और तीसरी कड़ी नीचे लिखी पंक्तियों पर क्लिक कर देखी और सुनी जा सकती है.
पिंक पत्रकारिता पीत पत्रकारिता से भी ज़्यादा खतरनाक है

पहले पेज पर छापो की हम झूठी खबरे देते है

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